नहीं आती ( ग़ज़ल )

तुम्हें जिस तौर लगता है मुझे वैसी नहीं आती

ग़ज़ल लिखनी तो आती है मगर कहनी नहीं आती

تمہیں جس طور لگتا ہے مجھے ویسی نہیں آتی

غزل لکھنی تو آتی ہے مگر کھنی نہیں آتی


ज़ियादा ऊँचे सपने हों तो फिर परवाज़ भी रख तेज़

सफ़र में चलते रहने से कभी रोटी नहीं आती

زیادہ اونچے سپنے ہوں تو پھر پرواز بھی رکھ تیز

سفر میں چلتے رہنے سے کبھی روٹی نہیں آتی


तुम्हारे बिन मैं अपनी ज़िन्दगी की क्या कहूँ तुमसे

तुम्हारे बिन मेरी तस्वीर तक अच्छी नहीं आती

تمہارے بن میں اپنی زندگی کی کیا کہوں تمسے

تمہارے بن میری تصویر تک اچّھی نہیں آتی


यक़ीनन नेकी और ईमाँ को रौंदा होगा फिर तुमने

शरीफ़ इंसाँ तक अब इस मुल्क़ में कुर्सी नहीं आती

یقیناً نیکی اور اماں کو روندا ہوگا پھر تمنے

شریف انساں تک اب اس ملف میں کرسی نہیں آتی


तुम्हारे शय के नख़रे उफ़ जो तुम रूठो तो ख़ाबों में

कभी झुमके नहीं आते कभी बिन्दी नहीं आती

تمہارے شے کے نخرے اف ، جو تم روٹھو تو خابوں میں

کبھی جھمکے نہیں آتے کبھی بندی نہیں آتی


अजब दुख है मेरा पहली नज़र का इश्क़ है यार और

मुझे इंग्लिश नहीं आती उसे हिन्दी नहीं आती

عجب دکھ ہے میرا پہلی نظر کا عشق ہے یار اور 

مجھے انگلش نہیں آتی اسے ہندی نہیں آتی


'नज़र' अर्चन तो तय है चाहे पैकर हो या फिर तहरीक

मकाँ-ए-हौसले में ज़हर की शीशी नहीं आती

'نظر' ارچن تو تے ہے چاہے پیکر ہو یا پھر تحریک

مکاں‌‌ِ حوصلے میں زہر کی شیشی نہیں آتی


― नज़र نظر


परवाज़ - Flight

शय - Things 

पैकर - Shape

तहरीक - Movement

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